Friday, November 3, 2017

औरंगज़ेब के शासनकाल में बरेली।

बरेली ने यूं तो मुगल काल का एक लंबा दौर देखा है लेकिन औरंगज़ेब आलमगीर के दौरे हुकूमत में बरेली में खास प्रगति हुई।
राजा मकरन्द राय के पुत्र नानकचंद खत्री को दिल्ली और बरेली की शासन व्यवस्था सौंपी गई। खत्री ने बरेली आने के बाद उन्होंने यहां 'नौ महला' को अपनी शिकारगाह बनाया। 'शाह दाना वली' के प्रति अपनी श्रद्धा दर्शाने के लिए उन्होंने शाह दाना के मकबरे का निर्माण करवाया।
नानकचंद खत्री के समय बरेली में पुराना शहर आबाद था, उन्होंने बरेली के पश्चिम में बांसों के वन को साफ करवा कर 'नया शहर' आबाद किया। सिर्फ इतना ही नहीं बरेली शहर में उस समय कोई 'जामा मस्जिद' नहीं थी, खत्री ने बरेली की पहली जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।
बरेली में आज भी उनके भाई भतीजो के नाम पर मकरंदपुर, कुंवरपुर आदि मुहल्ले आबाद हैं। 1707 में उनकी मृत्यु हुई।
©रबीअ बहार


Monday, October 23, 2017

स्वतंत्रता संग्राम और बरेली

बरेली में आला हजरत के नाम से मशहूर अहमद रज़ा खां साहब के सगे दादा मौलाना रज़ा अली खां बरेलवी (1809 से 1869) ने बरेली में अंग्रेज़ो के खिलाफ न सिर्फ माहौल तैयार किया बल्कि अंग्रेज़ो को नाकों चने चबाए। मौलाना रज़ा अली खां साहब एक जंगजू सिपाही की तरह अंग्रेज़ो के खिलाफ तन मन धन से लड़े। तत्कालीन लार्ड हेस्टिंग्स आप के सख्त खिलाफ था। जनरल हडसन ने आप को गिरफ्तार करने के लिए 500 रुपये इनाम भी घोषित किया था लेकिन वो कभी अपने मकसद में कामयाब न हो सका। आप 1857 में जनरल बख्त खां की बरेली की जेहादी यूनिट के संरक्षक थे। हाफिज रहमत खां आप के सुझावों पर अमल करते थे।
जब 1857 में जेहाद का फतवा दिया गया तो बरेली से आप ने उस फतवे का समर्थन किया और अंग्रेज़ो के सफाये का ऐलान किया।
बरेली के धार्मिक विद्वानों का आज़ादी की लड़ाई में विशेष स्थान है।
©रबीअ बहार

उर्दू ग़ज़ल में राम

राम शब्द को नफरत की राजनीति ने क्या से क्या बना दिया लेकिन मुहब्बत की ज़ुबान उर्दू की गज़लों में आज भी राम शब्द की महिमा का बखान होता है...
कुछ खास अशआर:-
इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वो
राम का अवतार लगता है मुझे।।
अहमद सोज़

हम भी तो उस ख़ुदा के बंदे हैं
हम से भी राम-राम कर लीजे।।
नाज़िम नकवी

काबा छूटा ख़ुदा ख़ुदा कर के
दैर में राम राम करते हैं।।
सखी लखनवी

शैख़ उस से पनाह माँगते हैं
बरहमन राम राम करते हैं।।
सबा लखनवी

ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
मिल सबी राम राम करते हैं।।
फ़ाइज़ देहलवी

कि बे-अदब का भला एहतिराम क्या करते
जो नास्तिक था उसे राम-राम क्या करते।।
रइस सिद्दीकी

क्या वफ़ादार हैं कि मिलने में
दिल सूँ सब राम-राम करते हैं।।
वली मुहम्मद वली

एक काटा राम ने सीता के साथ
दूसरा बन-बास मेरे नाम पर।।
नासिर शहज़ाद

रथ-यात्रा में मारे गए
राम की लीला वाले राम
और दिसम्बर छे के बा'द
जिस जा देखो क़त्ल-ए-आम
रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम
अशोक लाल
#संकलन_रबीअ_बहार

बरेली का ऐतिहासिक रंगमंच

आप ने अपने बचपन मे मंडली, खेल, नाटक कंपनी ज़रूर सुनी देखी होगी। आज हम जिसे रंगमंच के नाम से जानते हैं ये वोही है।
बरेली देश के उन गिने चुने शहरों में से एक है जिसने रंगमंच का इतिहास रचा और उसके तीन दौर देखे हैं। #पहला दौर जब पारसी थिएटर शुरू हुआ जब शेक्सपियर के नाटकों का मंचन होता था और फिर 1847 में बरेली के मौलवी करीमुद्दीन ने इसे भारतीय रूप दिया। उन्होंने भारतीय जनमानस में लोकप्रिय दास्तानों से नाटकों का रूप दिया और उनका मंचन किया। ये दौर चलता हुआ जब #दूसरे दौर में प्रवेश कर गया तो बरेली के पंडित राधेश्याम कथावाचक का दौर आया जब 1876 में उनके लिखे उर्दू नाटक 'मशरिकी हर' ने धूम मचा दी। धीरे धीरे ये दौर दास्तानों से होता हुआ पौराणिक कथाओं में दाखिल हुआ और फिर रंगमंच का रूप रसिया ढोला आदि ने लेना शुरू किया। खास तौर पर लोक संस्कृति ने रंगमंच को अपने ढंग से अपना लिया। त्यौहारों के अवसर पर शाम ढले गाँवों की चौपालों पर इनका प्रस्तुतीकरण किया जाता। इन नाटिकाओं के केन्द्रों में बिथरी चैनपुर, भोजीपुरा तथा पश्चिमी फतेहगंज के कुछ गाँव (सभी बरेली के निकट स्थित) हैं। "रसिया और ढोला" के कलाकारों मे माया देवी इलाहाबादी (शाहजहाँपुर), डोरी लाल तथा पप्पू (बिथरी चैनपुरी निवासी), जामन लाल तथा लक्ष्मी नारायण (ग्राम - क्यारा, निकट बरेली) का नाम आता है। जिनके नाटक सुल्ताना डाकू, नरसी का भात, आल्हा ऊदल, मरु का गौना आदि हैं। वर्तमान में बरेली पुनः #तीसरे दौर में प्रवेश कर चुकी है जिसमे अब बरेली अंतराष्टीय नाट्य महोत्सव और windermere नामक थिएटर हाल में नाटकों का सफल संचालन हो रहा है।
©रबीअ बहार

Sunday, September 11, 2016

*हाई कोर्ट के फैसले से आहत लोगों की मौतों का ज़िम्मेदार कौन ?

        (11 मई 2015 से 11 सितम्बर 2016 तक)
शिक्षामित्र पद से सहायक अध्यापक होने तक के सफर में क्या खोया क्या पाया

“दूसरों की गलतियों से सीखें … आपका जीवन इतना लम्बा नहीं है कि इन सब को आप स्वयं करके सीखें.”
— चाणक्य

आज ही के दिन हाई कोर्ट ने शिक्षामित्र समायोजन रद्द किया और अगले दिन अर्थात 12 सितम्बर को इसे सुनाया गया था।
जैसा कि चाणक्य का उपरोक्त कथन हमारे सामने है। इसको अपनी प्रेरणा बनाते हुए मिशन सुप्रीम कोर्ट के रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी इस फैसले को अपने साक्ष्यों से गलत सिद्ध करने को जुटे है।
*हाई कोर्ट के फैसले से आहत लोगों की मौतों का ज़िम्मेदार कौन है*:- सच तो ये है कि 11 मई 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने क्या होने वाला है बता दिया था। दिनांक 11 मई 2015 को इलाहाबाद हाइ कोर्ट जस्टिस वी के शुक्ला तथा हूलुवादी जी रमेश द्वारा फ्रेश केस की सुनवाई मे दिया गया ऑर्डर, जिसमे साफ कहा गया कि इस केस की अंतिम सुनवाई के समय शिक्षामित्रों को सहानुभूति व दया के आधार पर कोई छूट नही दी जाएगी तथा इस समायोजन से होने वाले नफा-नुकसान की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की होगी ।
इसके पूर्व मे जस्टिस वी के शुक्ला व जस्टिस कृष्ण मुरारी जी द्वारा रिट संख्या 3205 /2014 मे ऐसा ही ऑर्डर पास किया गया था जिसमे साफ किया गया था की समायोजन सरकार अपनी रिस्क पर करा रही है ।
इस तरह के फैसले से यह साफ होता है की जब भी निर्णय आएगा शिक्षामित्रों की ये दलील काम नही आएगी की वे 14 साल से पढ़ा रहे हैं और 14 महीने से राज्य सरकार के कर्मचारी हैं ।
यहाँ ये साफ़ हुआ कि इसकी पहली ज़िम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार की है। फिर इसके बाद इन मौतों की ज़िम्मेदार बहराइच टीम उर्फ़ एसएसकल्याण समिति, आदर्श शिक्षामित्र एसोसिशनऔर प्र शिक्षामित्र संघ की है।
क्यों? ये ही वो लोग थे जिनके सामने ऐसे कई आर्डर लुखनऊ और इलाहबाद बेंच ने दिए लेकिन किसी भी संघ या टीम ने मज़बूत पैरवी न करते हुए सब कुछ राज्य के भरोसे छोड़ दिया। वर्तमान में इन लोगों की भूमिका सुप्रीम कोर्ट में भी हाई कोर्ट जैसी ही है। जहाँ 57 एसएलपी राज्य की एसएलपी की प्रतिलिपि हों वहां आप और हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। 
*ब्लैक डे/काला दिवस हम उन साथियों की मौत का तो मना ही रहे हैं, साथ ही संघों की हालत पर भी मनाने को जी चाहता है*
अब बात वर्तमान हालात की अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई बुरी खबर आई तो इसके ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्रों की एसएलपी होंगी। और 45 से 55 साल वाले शिक्षामित्र अगर कोई गलत क़दम उठाते हैं तो इस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्र एसएलपी धारक ही होंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
*पोस्ट से सम्बंधित कोर्ट आर्डर देखने के लिए हमारे पेज पर विजिट करें*
©रबी बाहर,

Monday, March 31, 2008

14 से हो सकती है बीएड की तीसरी काउंसलिंग

Apr 01, 02:15 am
बरेली। मेरिट में आने के बावजूद बीएड में प्रवेश न पा सकने वाले छात्रों के लिए एक अच्छी खबर है। कानपुर यूनिवर्सिटी जल्द ही बीएड की तीसरे चरण की काउंसलिंग कराने जा रही है। इसके लिए विवि ने उन सभी कालेजों का ब्यौरा मांगा है, जहां किसी कारणवश अब तक प्रवेश नहीं हो सके हैं।
बीएड की तीसरे चरण की काउंसलिंग 14 अप्रैल से होने की संभावना है। पिछली दोनों काउंसलिंग में विश्वविद्यालयों से कालेजों की सूची मांगने के बाद अब कानपुर विवि से बीएड कालेजों से सीधे संपर्क साधा है। विवि के संबद्धता अधीक्षक एससी मित्तल ने बताया- कानपुर विवि से उन सभी कालेजों की सूची मांगी है जहां सत्र पूरा न हो सकने या किसी और वजह से मान्यता लंबित होने के कारण प्रवेश नहीं हो पाये हैं। कानपुर विवि ने ऐसे सभी कालेजों से चार अप्रैल से पहले संपर्क साधने को कहा है। दूसरी ओर दूसरे चरण की काउंसलिंग की अंतिम तिथि दो अप्रैल घोषित कर दी गई है। श्री मित्तल ने बताया : कानपुर विवि ने हमें अभी तीसरे चरण की काउंसलिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है, लेकिन जिस स्तर पर तैयारियां हो रही हैं उससे लगता है कि विवि जल्द से जल्द इस काम को निपटाना चाहता है। साभार
जागरण पोर्टल

अब एमएड में एडमीशन के लिए भी प्रवेश परीक्षा

Apr 01, 02:15 am
बरेली। अब बीएड में हासिल की गई ऊंची मेरिट एमएड में दाखिले का मापदंड नहीं बन पाएगी। राजभवन ने अगले सत्र से एमएड में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा देना अनिवार्य कर दी है। यह फैसला उन मेधावी विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है जो बीएड में ऊंची मेरिट नहीं होने के कारण प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। रुहेलखंड विवि भी अगले सत्र में एमएड में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा करायेगा।
बीएड में अच्छे अंक हासिल करके एमएड में प्रवेश पा जाने वाले छात्रों की राह विश्वविद्यालय ने मुश्किल कर दी है। आमतौर पर देखा जाता था कि स्वत्तिपोषित कालेजों के छात्र-छात्राएं सरकारी कालेजों के छात्र-छात्राओं से बहुत अधिक नंबर ले आते हैं। मेरिट कम होने के कारण मेधावी छात्र-छात्राओं को भी प्रवेश से वंचित रहना पड़ता है। प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से मिली ऐसी तमाम शिकायतों के बाद राजभवन ने अगले सत्र से अनिवार्य रूप से प्रवेश परीक्षा कराने के आदेश दिये हैं। राजभवन के आदेश का अनुपालन सुनिश्चत करने के लिए कुलपति ने कुछ दिन पहले विभिन्न कालेजों के प्राचार्यो की बैठक बुलाई थी। एक अरसे से एमएड में प्रवेश परीक्षा करवाने के लिए प्रयासरत हिंदू कालेज के प्राचार्य डा. एसएन सिंह ने बताया : विवि प्रशासन ने प्रवेश परीक्षा के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। प्रवेश परीक्षा होने से केवल उन्हीं छात्रों को प्रवेश मिलेगा जो वास्तव में एमएड करने की योग्यता रखते हैं। साभार
जागरण पोर्टल